नर्मदापुरम विधानसभा क्षेत्र, प्रदेश में एक रोचक और महत्वपूर्ण चुनाव के लिए तैयार हो रहा है, जहां दो सगे भाइयों के बीच क्षेत्र का नेतृत्व करने के लिए महाभारत देखने को मिल रही है। अपनी राजनैतिक गतिविधियों के कारण यह क्षेत्र सदैव चर्चित रहा है। मौजूदा चुनावी समीकरण में ये कांग्रेस और भाजपा की प्रतिस्पर्धा के साथ दो भाइयों के परिवार के बीच संघर्ष का प्रतीक भी बन गया हैं।
नर्मदापुरम क्षेत्र के चुनाव का इतिहास प्रदेश में बेहद दिलचस्प रहा है, लेकिन 2023 का मौजूदा मुकाबला बेहद महत्वपूर्ण हो गया है, आपसी रिश्तो का ये धुर्वीकरण आने वाले सामाजिक मुद्दे के रूप में पुरे प्रदेश को प्रभावित करेगा।
इस चुनाव में, दो सगे भाइयो भाजपा के प्रत्याशी डॉ. सीतासरण शर्मा और कांग्रेस के प्रत्याशी गिरजाशंकर शर्मा के बीच तनावपूर्ण प्रतिस्पर्धा ने ले लिया हैं। जिनका समर्थन न केवल उनके पार्टी के कार्यकर्ताओं द्वारा किया जा रहा है, बल्कि स्थानीय राजनैतिक विशेषज्ञों द्वारा समाज में भी व्यक्तिगत और राजनीतिक जनाधार तलाशा जा रहा हैं।
हाल ही में शर्मा परिवार के युवा सदस्य डॉ. वैभव शर्मा भी खुलकर बीजेपी के विरोध में सक्रीय हो गए हैं। उनके अनुसार स्वतः होने वाले विकास का श्रेय भी बीजेपी ले रही हैं। ये बात उन्होंने समाचार मीडिया को दिए अपने साक्षत्कार में कही स्थानीय विकास जितना हो सकता था उतना नहीं हुआ। शिक्षा और व्यापार की यहाँ बहुत संभावनाएं हैं बीजेपी द्वारा यंहा बहुत कुछ किया जा सकता था पर किया नहीं गया। भाजपा का सत्ता में वापस आना राज्य के व्यापक हित में नहीं है और हम ऐसा नहीं होने देने के लिए हर संभव प्रयास करेंगे। डॉ. वैभव शर्मा करीब 6 साल अमेरिका में रहे हैं।
एक लम्बे समय से इस सीट पर दोनों भाई ही विधायक रहे हैं। दल की अदला बदली का प्रयोग कर गिरजाशंकर कांग्रेस में आ गए अब मुकाबला दो भाइयो में हैं। कोई हारे जीते सीट पर शर्मा बंधू ही काबिज होंगे। यही बात उनके विरोधियो को परेशान कर रही हैं। एक तरीके से शर्मा बंधुओ ने अगले पांच साल फिर से सीट पर काबिज रहने की अपनी पारिवारिक राजनैतिक महत्वकांक्षाओं को टिकट लेने के साथ पूरा कर लिया हैं।
दोनों दल में सक्रीय कार्यकर्त्ता जो उम्मीदवारी की उम्मीद शीर्ष लोगों से लगाए हुए थे उनकी तो उम्मीद टूटी ही जनता भी निराश नज़र आ रही हैं।
कुछ विरोधी ने बीजेपी के प्रत्याशी, डॉ सीतासरण शर्मा की उम्मीदवारी का विरोध खुल कर किया, भोपाल तक अपनी बात पुरजोर रखी। पर येनकेन जीत बीजेपी का हमेशा ही टारगेट रहा हैं।
गिरजाशंकर को कांग्रेस ने पहले टिकट दे कर बीजेपी को चुनौती दे दी थी। बीजेपी को जीत के लिए डॉ सीतासरन शर्मा से बेहतर प्रत्याशी मिलना मुश्किल रहा होगा तभी उन्होंने छोटे भाई को बड़े भाई के विपक्ष में उतार दिया। शर्मा बंधुओ ने कभी युवा नेतृत्व को आगे ही नहीं आने दिया। तो कोई नया उम्मीदवार मिला मुश्किल ही था। विरोधियो ने विरोध किया उम्मीदवारी की दावेदारी भी की जिनमे प्रमुख नाम डा. राजेश शर्मा, पूर्व नपाध्यक्ष अखिलेश खंडेलवाल, संदेश पुरोहित, पूर्व जनपद अध्यक्ष भगवती चौरे, वरिष्ठ पार्षद शिवकिशोर रावत, जिला उपाध्यक्ष कल्पेश अग्रवाल, उमेश पटेल, दीपक हरिनारायण अग्रवाल, शैलेन्द्र दीक्षित हैं। अब वे भी संगठन के आगे शिथिल पड़ गए हैं। दोनों भाइयो की क्षेत्र में इन दावेदारों से अच्छी पकड़ हैं समर्थक भी प्रचार में सक्रीय हो गए हैं । अब विरोध के लिए कोई विकल्प नहीं बचा।
कांग्रेस आपसी मतभेद के कारण यहां की सीट पर पिछले तीस सालों से जीत नहीं पा रही है और अब वो इसे वापस पाने के लिए ज़ोर लगाना चाहती है, जबकि भाजपा चाहती है कि वह यहां का नेतृत्व अपने पास बनाए रखे। कांग्रेस इस सीट को वापस जीतने के लिए बेताब है, जबकि भाजपा इसे अपने वर्चस्व के रूप में साबित करना चाहती है। शर्मा परिवार का प्रभाव ही हैं की दोनों पार्टी को दोनों सागे भाइयो को आपसे में लड़ाना उचित लगा।
आम जनता की नज़र में से- प्रदेश में बढ़ती हुई महंगाई परेशानी बनी हुई हैं । बिगड़ती हुई स्वास्थ और शिक्षा व्यवस्था के कारण लोगो में निराशा हैं। रोजगार, स्वास्थ और शिक्षा के सुधार का विकल्प उन्हें मेडिकल कॉलेज में नजर आया तो सड़क पर उतरकर आम जनता ने कॉलेज की मांग भी की पर अब तक निराशा ही हाथ लगी। क्षेत्र में व्यापार , रोजगार के मामलो में सुधार के साथ सरकारी अस्पताल में विशेषज्ञों की कमी जैसे मुद्दों का समाधान जनता को अब तक नहीं मिल पाया हैं। जनता को भी नए उम्मीदवारी देखने के साथ परिवर्तन की अपेक्षा थी। फिलहाल उम्मीद और अपेक्षाएं दोनों भाइयों में से किसी एक को चुनने पर ठहर गई हैं।
इस सीट के चुनाव के बीच, क्षेत्र में कुछ समय से एक्टिव सामाजिक कार्यकर्ता अजय रणजीत सिंह राजपूत ने एक नये दल “नर्मदांचल नवनिर्माण” की स्थापना की प्रस्तावना दी है, राजपूत सरकारी मेडिकल कॉलेज के साथ-साथ शहर में जल संरक्षण के लिए सक्रीय रहते हैं। कोविड के दौरान निजी स्कूलों के फीस के मुद्दे को प्रशासन के समक्ष मजबूत आवाज दी थी। वह स्थानीय जनता को नई आवश्यकता के रूप में इस दल को पेश कर रहे हैं।
उनका संघर्ष क्या रंग लाएगा ये तो भविष्य के गर्त में हैं , लेकिन एक बात स्पष्ट है – इस सीट के चुनाव के परिणाम के साथ नर्मदापुरम जिले की राजनैतिक भविष्य की दिशा तय होगी, और निराश जनता और विरोधी कार्यकर्ताओ का संघर्ष महत्वपूर्ण प्रतीक के रूप में खड़ा होगा।