दीवान कॉलोनी के निवासियों ने नगर पालिका सीएमओ से पार्क में मंदिर निर्माण को रोकने की मांग

इटारसी। देश में मंदिर निर्माण को लेकर कहीं न कही लोगों के बीच आपस में विवाद तो वर्षो से चला आ रहा है, लेकिन विवाद को लेकर अनेक कारण सामने आये होंगे, लेकिन पुरानी इटारसी के दीवान कॉलोनी में मंदिर निर्माण को लेकर एक ऐसा मामला सामने आ रहा है, कि जिसमें नगर प्रशासन, नगर पालिका एवं स्थानीय अधिकारी भी सोंचने पर विवश हो गये है कि आखिर इस मामले क्या उपाय करें ?
कहते है बचपन खेलने, पढऩे और मौज-मस्ती करने के होता है, और बुजूर्ग अवस्था भगवान का भजन करने के लिए है, और हो भी यही रहा है कि बच्चे खेलकूद, मौज मस्ती कर रहे है, और बुजूर्ग भगवान की भक्ति में डूबे हुये। किन्तु जब भगवान की भक्ति और खेलने की जगह एक ही हो तो विवाद होना स्वाभिक है, और ऐसा ही एक मामला पुरानी इटारसी के दीवान कॉलोनी में देखने को मिल रहा है, जहाँ बच्चें पार्क में खेलने के मैदान में मंदिर बनाने का विरोध कर रहे है, तो वही कुछ सेवानिवृत्त बुजूर्ग पार्क में मंदिर बनाने को लेकर अड़े हुये है। जिनके बच्चें इस पार्क में खेलते है, वह मंदिर बनाने के विरोध में है, और जिन बुजूर्ग के बच्चें बड़े हो गये है, इनके साथ नही रहते है, वह पार्क में मंदिर बनाने के पक्ष में है। और यही कारण है कॉलोनी के निवासियों ने नगर पालिका इटारसी सीएमओ को एक आवेदन देकर पार्क के भीतर मंदिर निर्माण रोककर उसे अन्य किसी स्थान पर बनाने की मांग की है।
आवेदन में कॉलोनी के निवासियों ने कहा कि कॉलोनी में और भी कई मंदिर है लेकिन पार्क एक ही है, और भी इतना छोटा है कि यदि मंदिर बन जायेगा तो बच्चों के खेलने के लिए जगह ही खत्म हो जायेगी। वहीं इसी पार्क में जो लोग भवन या मैरिज गार्डन लेने असमर्थ है, अपनी जरूरत के हिसाब से शादी सामरोह, भागवत कथा, यहाँ तक की मृत्युभोज इत्यादि काम कराते है। उनकी यह व्यवस्था तो भी मंदिर बनने के बाद पूरी तरह खत्म हो जायेगी।
कुछ सेवानिवृत्त बुजूर्गो ने आपस में बैठक कर पैसों की व्यवस्था कर बिना लोगों की सहमति लिये हुये मंदिर का निर्माण कार्य प्रारंभ करवा दिया है, अब ऐसे में यदि मंदिर का निर्माण कार्य पूरा हो जाता है, तो बच्चों के लिए खेलने की जगह खत्म हो जायेगी।
कालोनीवासियों की ओर से नगर पालिका सीएमओ एवं समक्ष अधिकारियों को आवेदन देकर इस स्थिति से अवगत कराकर दीवान कॉलोनी पार्क में मंदिर निर्माण को रोकने की मांग की है, जिससे बच्चों के लिए पार्क का सही उपयोग हो सके।
आज वैसे ही बच्चें और युवा मोबाइल की लत में इतना डूब चुके है, कि उनका खेलना, पढऩा, मनोरंज सब मोबाइल पर ही निर्भर हो गया है, ऐसे में न केवल उनको कई तरह की मानसिक बीमारी होने की आशंका बनी हुई है, बल्कि समय के साथ उनके आँखों और कानों की समस्या से जूझना पड़ सकता है, और यदि माता-पिता ऐसा नही चाहते है, तो उन्हे अपने घर के बच्चों मोबाइल की लत से बाहर निकलाकर मैदान में खेलने को बाहर लाना होगा, लेकिन इसके जरूरी है, शहर में जो पार्क अतिक्रमण और दबंगों के कब्जों में अपना नामोनिशान खो चुके है, या जो मंदिर या अन्य निर्माण के कारण छोटे होते जा रहे है, उन्हें बच्चों के बेहतर स्वास्थ्य और भविष्य के लिए बचाना होगा। पार्क केवल बच्चों को अच्छा स्वास्थ्य नही देते बल्कि पार्क में लगे पेड़ पौधे हमारे पर्यावरण को स्वस्थ्य बनाये रखने में बड़ी भूमिका निभाते है। बुजूर्ग घर बैठकर भगवान की भक्ति और भजन कर सकते है, लेकिन बच्चें घर में बैठकर मोबाईल पर खेलते है तो उनके शारीरिक विकास में यह बहुत बड़ी बाधा है। फैसला भी बुजूर्ग को ही करना है कि वह अपनी युवा पीढ़ी को कमजोर चाहती है, कि स्वस्थ्य और ताकतवर ? इसके लिए मंदिर से कही ज्यादा जरूरी बच्चों के लिए खेल मैदान को हमें प्राथमिकता देनी होगी, मंदिर और भगवान तो दिलों में बसते है, लेकिन खेल मोबाईल तक सीमित नही होने चाहिए, खेल पार्क और मैदान तक पहुँचने चाहिए।
बुजूर्गो और ऐसे लोगों को आगे आकर समझना होगा कि यदि उनके लिए भक्ति जरूरी है, तो बच्चों के लिए बचपन में खेलना भी उतना ही जरूरी है, उसके लिए पार्क और मैदान इतना तो खाली छोड़ा जाये कि वह अपना शारीरिक विकास के लिए खेलकूद सके । यदि मंदिर में भगवान रहते है, तो बच्चें भी तो भगवान का ही रूप है, एक भगवान को प्रसन्न करने के लिए आप बच्चों के रूप में मौजूद दूसरे भगवान को दुखी क्यों कर रहे है, यह समझ से परे है?

About The Author