विश्व पर्यावरण दिवस: कारण, शुरुआत, उद्देश्य और विश्लेषण

बैतूल। विश्व पर्यावरण दिवस (World Environment Day) हर साल 5 जून को मनाया जाता है। इसकी शुरुआत 1972 में संयुक्त राष्ट्र (United Nations) द्वारा स्वीडन के स्टॉकहोम में आयोजित मानव पर्यावरण सम्मेलन (UN Conference on the Human Environment) के दौरान हुई। पहली बार इसे 1974 में औपचारिक रूप से मनाया गया। इसका मुख्य उद्देश्य पर्यावरण संरक्षण के प्रति वैश्विक जागरूकता बढ़ाना और लोगों, सरकारों, संगठनों को पर्यावरण के प्रति जिम्मेदार व्यवहार अपनाने के लिए प्रेरित करना है। पर्यावरणीय समस्याओं जैसे प्रदूषण, जलवायु परिवर्तन, जैव विविधता ह्रास और प्राकृतिक संसाधनों के अति-दोहन के बारे में जागरूकता फैलाने, टिकाऊ विकास को बढ़ावा देना और पर्यावरण-अनुकूल नीतियों को लागू करने, व्यक्तियों और समुदायों को पर्यावरण संरक्षण के लिए सक्रिय कदम उठाने के लिए प्रोत्साहित करना इसका मुख्य उद्देश्य रहा. 1972 में तत्कालीन समय की परिस्थियों को देखते हुए संयुक्त राष्ट्र ने पर्यावरणीय चुनौतियों से निपटने के लिए एक वैश्विक मंच की आवश्यकता महसूस की। उस समय औद्योगीकरण, शहरीकरण और जनसंख्या वृद्धि के कारण पर्यावरण पर दबाव बढ़ रहा था। जल, वायु, आकाश, पृथ्वी और रासायनिक प्रदूषण ने पर्यावरण के प्रमुख तत्वों—जल, वायु, आकाश और पृथ्वी—को गंभीर रूप से प्रभावित किया है।

हमारी क्या जिम्मेदारी

       जल प्रदूषण की रोकथाम के लिए : औद्योगिक कचरे, कीटनाशकों और प्लास्टिक कचरे से जल स्रोत दूषित हो रहे हैं। जल शुद्धिकरण संयंत्र स्थापित करना, औद्योगिक उत्सर्जन पर नियंत्रण, और एकल-उपयोग प्लास्टिक पर प्रतिबंध लगाकर जनता को इसके प्रति जागरूक होना पड़ेगा। वायु प्रदूषण की रोकथाम के लिए: वाहनों, उद्योगों और जीवाश्म ईंधन के जलने से वायु प्रदूषण बढ़ रहा है। स्वच्छ ऊर्जा स्रोतों (सौर, पवन) को बढ़ावा देना, वाहनों में उत्सर्जन मानकों को लागू करना, और वृक्षारोपण अति आवश्यक है। आकाश (जलवायु परिवर्तन): ग्रीनहाउस गैसों (CO₂, मीथेन) के उत्सर्जन से जलवायु परिवर्तन हो रहा है। कार्बन उत्सर्जन को कम करना, नवीकरणीय ऊर्जा को अपनाना, और वैश्विक जलवायु समझौतों का पालन अति आवश्यक है। पृथ्वी (मृदा प्रदूषण): रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों से मिट्टी की उर्वरता कम हो रही है। जैविक खेती को बढ़ावा देना, मृदा संरक्षण तकनीकों का उपयोग, और रासायनिक उपयोग में कमी साथ ही जविक खेती को बढ़ावा देना अति आवश्यक है। उत्तरी और दक्षिणी ध्रुव का पिघलना: विश्लेषण पर्यावरण क्षरण, विशेष रूप से ग्लोबल वार्मिंग, के कारण उत्तरी ध्रुव (आर्कटिक) और दक्षिणी ध्रुव (अंटार्कटिका) की बर्फ तेजी से पिघल रही है। वृक्षारोपण पर्यावरण संरक्षण का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। जिससे ऑक्सीजन उत्पादन, मृदा संरक्षण, जैव विविधता संरक्षण, जलवायु नियंत्रण होता है, हमे जल संरक्षण को जीवन का आधार बनाना आवश्यक है इसका संरक्षण अत्यंत आवश्यक है . गौ पालन पर्यावरण संरक्षण में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है जैविक खाद गोबर और गोमूत्र से जैविक खाद और कीटनाशक बनाए जा सकते हैं, जो रासायनिक उर्वरकों का विकल्प हैं, मृदा उर्वरता गोबर मिट्टी की उर्वरता बढ़ाता है और रासायनिक प्रदूषण को कम करता है, पारंपरिक ऊर्जा गोबर से बायोगैस उत्पादन पर्यावरण-अनुकूल ऊर्जा स्रोत है। जैव विविधता चरागाहों का रखरखाव जैव विविधता को बढ़ावा देता है। भारत में गाय को पवित्र माना जाता है, और इसका संरक्षण सांस्कृतिक और पर्यावरणीय दोनों दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है। आज विश्व पर्यावरण दिवस पर हमे भारत के महानतम प्रख्यात वैज्ञानिक, भौतिकशास्त्री, जीवविज्ञानी, वनस्पतिशास्त्री और पुरातत्ववेत्ता डॉ. (सर) जगदीश चन्द्र बसु को भी यद् करना आवश्यक है। वे भारत के पहले वैज्ञानिक थे जिन्होंने रेडियो और सूक्ष्म तरंगों (माइक्रोवेव) की प्रकाशिकी पर कार्य किया और वनस्पति विज्ञान में महत्वपूर्ण योगदान दिया। उन्हें रेडियो विज्ञान का पिता और बंगाली विज्ञान कथा साहित्य का जनक भी माना जाता है। बसु ने रेडियो और सूक्ष्म तरंगों पर शोध किया और हेनरिक हर्ट्ज के रिसीवर को उन्नत किया। वे पहले भारतीय वैज्ञानिक थे जिन्होंने अमेरिकी पेटेंट प्राप्त किया, उनकी तकनीक का उपयोग रेडियो, टेलीविजन, रडार, रिमोट सेंसिंग और माइक्रोवेव ओवन में हुआ। बसु ने सिद्ध किया कि पौधों में भी संवेदनशीलता होती है और वे दर्द, खुशी, ठंड, गर्मी, और विद्युतीय उद्दीपन का जवाब दे सकते हैं। उन्होंने क्रेस्कोग्राफ नामक यंत्र का आविष्कार किया, जो पौधों की सूक्ष्म वृद्धि को 10,000 गुना तक बढ़ाकर माप सकता था। उनके शोध ने क्रोनोबायोलॉजी (जीवों में समय के प्रभाव का अध्ययन) की नींव रखी। तेल अवीव विश्वविद्यालय के शोध ने उनके कार्य को और सत्यापित किया, जिसमें पाया गया कि पौधे तनाव में अल्ट्रासोनिक ध्वनियां निकालते हैं। उनका मानना था कि सजीव और निर्जीव पदार्थों के बीच विद्युतीय संकेतों का गहरा संबंध है।चंद्रमा पर उनके सम्मान में एक क्रेटर का नाम बोस क्रेटर रखा गया। डॉ. बसु का पौधों में संवेदनशीलता और जैविक क्रियाओं पर शोध पर्यावरण संरक्षण के लिए अत्यंत प्रासंगिक है। उनके क्रेस्कोग्राफ और पौधों की जैविक प्रक्रियाओं पर अध्ययन ने यह सिद्ध किया कि पौधे भी पर्यावरणीय परिवर्तनों के प्रति संवेदनशील हैं, जिससे हमें प्रकृति के साथ संवेदनशील व्यवहार करने की प्रेरणा मिलती है। विश्व पर्यावरण दिवस हमें पर्यावरण संरक्षण की जिम्मेदारी याद दिलाता है। वृक्षारोपण, जल संरक्षण और गौ पालन जैसे कदम पर्यावरण को संतुलित रखने में मदद करते हैं। डॉ. जगदीश चन्द्र बसु के शोध ने न केवल वैज्ञानिक क्षेत्र में क्रांति लाई, बल्कि प्रकृति और जीवों के बीच गहरे संबंध को समझने में भी मदद की, जो पर्यावरण संरक्षण के लिए प्रेरणादायक है। दुर्गादास (डी.डी.) उइके केन्द्रीय राज्यमंत्री (जनजातीय मामले भारत सरकार)

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