बैतूल। सामाजिक समरसता राष्ट्र की आत्मा है। इसी सामाजिक एकात्मता के कारण भारत विश्व गुरू के सिंहासन पर प्रतिष्ठित था, जगतगुरू की वैश्विक भूमिका में हमने समुची दुनिया को एक परिवार के रूप में स्वीकार किया। वसुधैव कुटुंबकम का उद्घोष हमारी पावन पवित्र भारतभूमि से हुआ है। आत्मवत् सर्वभूतेषू कृष्णवंतो विश्वमार्यम, सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे संतु निरामया….. । कण-कण में जड़चेतन में परमात्मा की अनुभूति करने कराने वाला यह राष्ट्र हमें जन्म देने वाली माता से भी अधिक वंदनीय और पूजनीय है। इसलिए हमने इसे पूण्यभूमि, मातृभूमि, भारतमाता के रूप में अंगीकार किया है। यह राष्ट्र आंतरिक और बाह्य रूप से कैसे मजबूत बने। इतिहास में जो त्रुटियाँ हुई है, हमारी जो कमजोरियों रही है, कमजोरियों का लाभ उठाकर विदेशी आकांताओं ने, विधर्मियों ने इस राष्ट्र को खंडित करने उसे तोड़ने के अनेकानेक प्रयत्न किये है। भारत, भारतीय संस्कृति, धर्म परम्परा, आस्था और श्रद्धा के केन्द्रों को, धर्म ग्रंथों को, इतिहास को नष्ट करने हेतु नाना प्रकार से षड़यंत्र रचे गये। विधर्मी अनेक बार सफल भी हुए। इतिहास के भूगर्भ में जाने पर ज्ञात होता है कि यह वृहद्ध भारत वर्ष कितना विशाल था, भव्य और दिव्य था। आपको विदित हो विधर्मियों, राष्ट्र विरोधियों ने षड़यंत्र पूर्वक सोची-समझी नीति के तहत योजना बनाकर इस राष्ट्र के अनेक बार टुकड़े किये। पाकिस्तान, अफगानिस्तान, बंगलादेश, श्रीलंका, नेपाल, भूटान, तिब्बत, म्यामार, जावा, सुमात्रा, बाली, थाईलैंड, इंडोनेशिया, मलेशिया इस तरह पूर्व में 22 बार इस राष्ट्र का विखंडन हुआ है। पाक अधिकृत कश्मीर में 38 हजार वर्ग किलोमीटर जमीन पाकिस्तान ने हड़प ली है, 93 हजार वर्ग किलोमीटर जमीन चीन ने हड़प रखी है, अरूणाचल प्रदेश पर भी अपना दावा प्रस्तुत कर रहा है। मित्रों वर्तमान में भी देश का आंतरिक और बाह्य स्वास्थ्य ठीक नहीं है। देश को अस्थिर करने, देश को तोड़ने का षड़यंत्र आज भी चल रहा है। हमें सावधान रहने की जरूरत है। स्वयं जागने एवं समाज राष्ट्र को जगाने की सक्त आवश्यकता है। सबसे ऊपर राष्ट्र है, मित्रों, राष्ट्र हित सर्वोपरी है। राष्ट्र रहेंगा तब हम सब रह पायेगें। राष्ट्र की एकता, सामाजिक समरसता और अखंड़ता को नुकसान पहुँचाने का प्रयास स्वीकार नहीं है। समय आ गया है कि समाज, राष्ट्र धर्म, संस्कृति को क्षति पहुँचाने वाली नकारात्मक शक्तियों को चिन्हित करें, उन्हें समाज में ढूंढें, पहचाने, उनके भ्रमित करने वाले प्रयासों पर तीक्ष्ण दृष्टि रखें, यह प्रत्येक राष्ट्र भक्त का दायित्व है। मै इस आलेख के माध्यम से अपने जनजातीय बंधु-बांधवों को बताना चाहता हूँ आप तथाकथित समाज, राष्ट्र विरोधी दुष्प्रचारकों से सावधान रहे। उनके कुटिल, कुत्सिीत बयानों, प्रयासों को सफल ना होने दें। राष्ट्र विरोधी ताकतें समाज में फूट डालना चाहती है, अंग्रेजों की “फूट डालों राज्य करों” की नीति का प्रयोग करकें हमारे भोले-भालें समाज को विकास के मार्ग से हटाना चाहते है। हमारे समाज को “बली का बकरा” बनाना चाहते है। परदे के पीछे से जो लोग नेतृत्व कर रहे है वे राष्ट्र को, समाज को तोड़ना चाहते है। उनके मन के भावों को समझने और गलत उद्देश्यों को नाकाम करने की जरूरत है। समाज के पढ़े-लिखें प्रभावी लोगों का दायित्व है कि समाज बंधुओं का सही-सही मार्गदर्शन करें। कुछ लोग निकृष्ट राजनैतिक स्वार्थवश आदिवासी समाज में नाना प्रकार के भ्रम फैलाना चाहते है, वृहद हिन्दू समाज की एकता को खंडित करना चाहते है। हमें “सबका साथ सबका विकास” इस नारे से भटकना नहीं है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ किसी धर्म, जाति के विरुद्ध नहीं है। बल्कि समाज को एकजुट करना चाहते है। ताकि हम विकास के मार्ग पर तेजी से बढ़ सकें। सामाजिक समरसता और राष्ट्र की एकता और अखंड़ता का उद्देश्य है, प्रत्येक गाँव स्वच्छ हो, निर्मल हो, प्रत्येक घर, सड़के, गलियां, आस्था, श्रद्धा के केन्द्रों पर साफ-सफाई हो, नलकूप, हेंडपंप, कुओं के आसपास सफाई हो, गंदगी के कारण कई प्रकार की बीमारियों होती है। उससे समाज बचे, दीर्घ जीवी हो, जल संरक्षण करें, गाँव में तालाब हो, स्टाप डेम हो, गांव का पानी गांव में ही रूकें, इसके लिये बोरी बंधान बनाये ताकि जल स्तर ऊपर उठ सके। समाज में हमारी माता-बहनों को उचित सम्मान मिलें तथा सामाजिक, राजनैतिक, आर्थिक क्षेत्रों में उनकी उचित भागीदारी हों, महिलायें सशक्त हो। रक्त परीक्षण शिविरों के माध्यम से रक्तदान को बढ़ावा मिलें ताकि जरूरत मंदों को रक्त उपलब्ध हो सकें। युवा सम्मेलन के माध्यम से युवक नशे से दूर हो तथा उनमें राष्ट्रप्रेम की भावना बढ़े। विभिन्न जातियों के सम्मेलन का उद्देश्य है समाज में समरसता का भाव विकसित हो। सब मिलकर कल्याणकारी पथ पर कैसे आगे बढ़े और राष्ट्र को सुदृढ़ और सुसम्पन्न कैसे बनाये? जैविक कृषि को बढ़ावा देकर रासायनिक कृषि को कैसे हतोत्साहित करें। इससे हमारी भूमि की उर्वकता घट रही है। नाना प्रकार की बीमारियाँ बढ़ रहीं है। परम्परागत कृषि को बढ़ावा देना है। गोपालन, गौसंवर्धन, गौ संरक्षण के माध्यम से गांव हमारे डेयरी उद्योग के क्षेत्र में कैसे विकसित हो। आर्थिक रूप से गांव कैसे विकसित हो? वन घट रहे है, पर्यावरण प्रदूषण बढ़ रहा है। पर्यावरण को संतुलित करने के लिए वृक्षारोपण को जन आंदोलन बनाना है। हमारे गांव के मंदिर केवल पूजा नहीं अपितु जन जागरण के केन्द्र बनें। प्रत्येक गांव आत्म निर्भर बनें, स्वावलम्बी बनें। गांव-गांव आर्थिक रूप से सुदृढ़ हो, सुखी सम्पन्न हो। हमारी मानवीय संवेदनायें मुखरित हो, सामाजिक मूल्यों का संरक्षण हो, अभिवर्धन हो, हमारी सामाजिक रचना भेदभाव, ऊँच-नीच रहित हो। हम सब मिलकर कैसे विकास कर सकते है, इसका ढ़ांचा विकसित हो। युवा सम्मेलन के माध्यम से युवकों को दुर्व्यसनों से दूर कर राष्ट्र, धर्मे एवं संस्कृति के प्रति जाग्रत करना तथा कर्तव्यबोध कराना है। भारत माता का पूजन सच्चे अर्थो में अपनी धरती माता के प्रति आभार व्यक्त करना है, अपनी मातृभूमि के प्रति हमारे दायित्वों का बोध कराना है, यह धरती माता जो हमें सब कुछ देती है हमें भी इसे कुछ देना चाहिए। यह करूणामयी माता हमें अन्न, धन, फल-फूल, सोना-चांदी, हीरा-मोती सबकुछ देती है। हम इसी की गोदी में खेलते कुदते जीवन यापन करते है। हमारा मकान, दुकान, खेत-खलियान सब कुछ इसी माँ की गोदी में ही है। एक दिन इसी माँ की गोदी में हमारा विलय हो जाता है। कितना कर्ज है इस धरती माता का ? क्या हम इसका पूजन नहीं करें? क्या यह मॉ आरती उतारने योग्य नहीं है? मित्रों भारतमाता की आरती का अर्थ है कृतज्ञता, आभार का भाव व्यक्त करना। सबमें अपनी मातृभूमि के प्रति प्रेम, प्यार जाग्रत करना। अपने राष्ट्र के प्रति श्रद्धा, सद्भाव जागरण करना। राष्ट्र धर्म सबसे ऊपर है। अपने प्यारें राष्ट्र के लिये प्राण न्यौछावर करने का पावन पवित्र भाग जाग्रत करना।

